कभी कभी जब मै बैठ जाता हूँ अपनी 'यादों' के सामने, छोटे से दायरे में
वो घूर के देखती है मुझको ...........
एक 'याद' आगे आती है, छु के पेशानी पूछती है
" बताओ अगर दुःख है सोच में कोई तो, मै पास बैठू, मदद करू और सुलझा दू उलझने तुम्हारी ?"
"उदास लगते हो" , एक कहती है पास आकर
"जो कह नहीं सकते तुम किसी को, तो मेरे कानो में डाल दो राज अपनी सरगोशियों के"
भड़क के कहती है एक नाराज 'याद' मुझसे
"मै कब तक अपनी आँखों मे लूंगी तुम्हारी आँखों का खारा पानी "
एक और छोटी सी 'याद' कहती है..
" पहले भी कह चुकी हूँ तुझे, जिंदगी की चढ़ान चड़ते अगर तेरी साँसे फूल
जाये, तो मेरे कंधे पे रख दे कुछ बोझ , मै उठा लू "
वो चुप सी एक 'याद' पीछे बैठी जो टकटकी बांधे देखती रहती है मुझे बस..
ना जाने क्या है की उसकी आँखों का रंग तुम पर चला गया है ....
कभी - कभी जब मै बैठ जाता हूँ अपनी 'यादों' के सामने, छोटे से दायरे में
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on Friday, May 10, 2013
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