पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों कों अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
तकिये पे तेरे सर का वो बाल है पड़ा
है चादर में तेरे जिस्म की वो सौंधी सी खुशबु
हाथों में महकता है तेरे चहरे का एहसास
माथे पे तेरे होठों की मोहर लगी है
तू इतनी करीब है की तुझे देखूं तो कैसे
थोड़ी सी अलग हो तो तेरे चहरे को देखूं
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
मास्जिदों के मिनारों ने देखा उन्हें
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें