18
Aug
महक
तकिये पे तेरे सर का वो बाल है पड़ा
है चादर में तेरे जिस्म की वो सौंधी सी खुशबु
हाथों में महकता है तेरे चहरे का एहसास
माथे पे तेरे होठों की मोहर लगी है
तू इतनी करीब है की तुझे देखूं तो कैसे
थोड़ी सी अलग हो तो तेरे चहरे को देखूं
This entry was posted
on Saturday, August 18, 2007
at Saturday, August 18, 2007
. You can follow any responses to this entry through the
comments feed
.