प्रेम कहानी - कुछ सच्ची, कुछ झूटी  

Posted by Barfani bAbA

समीर और अर्पिता . . मेरी कल्पना के दो पात्र |


दोनों ही एक दुसरे से बे-इन्तेहाँ मोहब्बत करते थे . एक ही शहर में रहते थे, कभी हँसते थे, कभी लड़ते थे, पर एक दुसरे के बिना एक पल भी नहीं रह पाते थे.  बच्चो जैसा पागलो वाला प्यार था उनका |


लेकिन इस कहानी में ना तो शहर का कोई नाम है, ना कोई और रिश्ता-नाता, ना उम्र का जिक्र है, ना वक़्त का.......... ये तो एक कोरी कल्पना है , मेरा एक सपना …आधा - अधुरा |


ये कहानी  चलेगी....टुकडो - टुकडो में .


क्युकी उनकी   प्रेम कहानी भी  टुकड़ो में ही चली थी, टुकड़ा-टुकड़ा सुख, टुकड़ा-टुकड़ा दुःख |

ये ही सुख - दुःख के दुकड़े  इस यादों  भरी  झील में तैर रहे है | आईये इन टुकडो को जोड़ कर उनकी दुनियां मे चलते है....चलिए  देखेते  है  आज कौन सा टुकड़ा बह कर किनारे पर आया है.....


…........... पड़ते है एक नयी याद.  नयी कहानी..





दो-एक दिन से समीर की तबियत ख़राब थी.. इसलिए काम से छुट्टी  ले कर आज कल वो घर पर ही रहता था.
अपनी अर्पी को वो बहुत miss कर रहा था.. जब अर्पी उसके पास थी तो वो उसका   कितना   ध्यान  रखती थी |

जरा सा समीर का चेहरा उतरा हो तो वो कितना  परेशान हो जाती थी... उसके लिए वो कितना कुछ बनाती और अपने हाथो  से खिलाती थी...
रात दिन उसकी फ़िक्र करती थी जब तक समीर की तबियत ढीक ना हो जाए...


उसकी सेहत  के लिए उसने कितने  मंदिरों में और कितनी मज़ारो में  मन्नत मांगी थी,... कितने ज्योतिषों से उसके बारे में पुछा था...

समीर के लिए वो पूरी तरह समर्पित थी... इतना प्यार कोई इंसान किसी को नहीं कर सकता...


दो दिन से समीर बिस्तर पर लेटा  बस पुरानी फोटो  को देख रहा था... उसकी और अर्पिता की...वो पुरानी  यादों में खो गया था ..

एक फोटो में दोनों ने ब्लैक गॉगल्स लगा रखे थे.. काफी पुरानी फोटो थी... क्या डैशिंग लग रही थी उसकी अर्पी...


और एक फोटो में वो दोनों जब किसी हाट में थे... तब की... वो फोटो समीर को बहुत ही प्यारी थी .. अर्पिता ने महरून कलर का सूट पहना हुआ था...और पक्की राजस्थानी लग रही थी.... उसने प्यार से समीर का हाथ पकड़ा हुआ था और समीर ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हुआ था उस  फोटो में....


समीर को आज भी उस हाथ की नरमी अपनी हथेलियों पर महसूस हुई ...लगा जैसे अर्पिता की उँगलियाँ अभी भी उसके हाथो में और उसकी उंगलियों में कसमसा रही हो....


जब कभी अर्पी को कोई बात समीर को बतानी होती थी, या अपनी बात मनवानी होती, तो वो उसका हाथ अपने हाथ में ले कर उसकी उंगलियों से खेलने लगती थी.. और कहती … सुनिए जी... आपको एक बात बतानी है... और समीर किसी जादू में बंधा उसकी मीठी बातों में खो जाता... ना जाने क्या - क्या वो समीर से मनवा लेती थी उसकी उँगलियों से खेलते खेलते | बहुत दिनों बाद उंगलियों में वैसी ही कसमसाहट महसूस हो रही थी |


वे भी क्या अजीब दिन थे एक दुसरे पर अधिकार जताने के . 

खुश हो गए तो ऐसे खुश की अपना सब कुछ दे डाले..और नाराज हुए तो ऐसे नाराज की रो रोकर आसमान सर पर उठा  ले..जनम जनम के बंधन तोड़ ले... 

आज ये सब किससे करू ? और करू भी तो अच्छा लगेगा क्या ? मन पर जैसे कफ़न पड़ गया है...

समीर की पलके डबडबा आयी..

This entry was posted on Sunday, September 08, 2013 at Sunday, September 08, 2013 . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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