18
Aug
ख़्वाब
पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों कों अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
तकिये पे तेरे सर का वो बाल है पड़ा
है चादर में तेरे जिस्म की वो सौंधी सी खुशबु
हाथों में महकता है तेरे चहरे का एहसास
माथे पे तेरे होठों की मोहर लगी है
तू इतनी करीब है की तुझे देखूं तो कैसे
थोड़ी सी अलग हो तो तेरे चहरे को देखूं
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
मास्जिदों के मिनारों ने देखा उन्हें
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें